मेहसूस करते थे हम
उस सेहमे से एहसास को..
बिखर सा गया था
अनकहासा कही वोह|
ना जाने कहाँसे
छा गयी अजनबीसी?
ना पहचान हैं..
जान उलझीं हुई सी..
ना दर्द मिलें
न ग़म का हों साया;
उनकी मुस्कुराहटोमे
था दिल ये समाया|
निगाहें न मिली
लफ़्ज़ हो गए लापता,
ख़्वाहिशें न रहीं
और बस्स.....
कर दिए अलविदा |
-पल्लवी
४/१/२०१५
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